आज सुबह कुछ अलग सा है,
नींद टूटी हवा की सरसराहट से,
आधा अधूरा अँधेरा छाया हुया है इधर उधर,
अचानक ऐसी बदलती मौसम में मन कहीं दूर भाग चला है
घूमता हुया भवंडर जैसे पानी की लहरें आने लगी है
डरी हुयी पंछियो की आवाज़ों से कहीं यह मौसम रूठ न जाये,
घुटन सी थी जो रात, आज उसमे जान सी छाई है,
ताज़ी हवा की छीटें मुझे ले चली है कहीं और
उड़ता हुया एक पतंग बंधी पड़ी थी पेड़ के सिरहाने,
आज उसे आज़ादी सी मिल गई,
उसके साथ मन किया जाऊ उड़के कहीं दूर,
वह दूर कहीं और नहीं,
मेरे अपने घर,
मेरे अपने घर
अचानक ऐसी बदलती मौसम में मन कहीं दूर भाग चला है
घूमता हुया भवंडर जैसे पानी की लहरें आने लगी है
डरी हुयी पंछियो की आवाज़ों से कहीं यह मौसम रूठ न जाये,
घुटन सी थी जो रात, आज उसमे जान सी छाई है,
ताज़ी हवा की छीटें मुझे ले चली है कहीं और
उड़ता हुया एक पतंग बंधी पड़ी थी पेड़ के सिरहाने,
आज उसे आज़ादी सी मिल गई,
उसके साथ मन किया जाऊ उड़के कहीं दूर,
वह दूर कहीं और नहीं,
मेरे अपने घर,
मेरे अपने घर
हिन्दी रचना में स्वागत :)
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