Wednesday, 15 June 2016

आज घर चलते है

आज सुबह कुछ अलग सा है,
नींद टूटी हवा की सरसराहट से,
आधा अधूरा अँधेरा छाया हुया है इधर उधर,
अचानक ऐसे बदलती मौसम में मन कहीं दूर भाग चला है

घूमता हुया भंवर जैसे पानी की लहरें आने लगी है
डरी हुयी पंछियो की आवाज़ों से कहीं यह मौसम रूठ न जाये,
घुटन सी थी जो रात, आज उसमे जान सी छाई है,
ताज़ी हवा की छीटें मुझे ले चली है कहीं और

उड़ता हुया एक पतंग बंधी पड़ी थी पेड़ के सिरहाने,
आज उसे आज़ादी सी मिल गई,
उसके साथ मन किया जाऊ उड़के कहीं दूर,
वह दूर कहीं और नहीं,
मेरे अपने घर,
मेरे अपने घर

1 comment:

  1. हिन्दी रचना में स्वागत :)

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